चीन के बाद राजस्थान के इस किले की दीवार है वर्ल्ड की सबसे लंबी दीवारों में शुमार
इस बात में कोई शक नहीं कि जयपुर बहुत ही सुन्दर सिटी है जिसकी सुन्दरता निहारने हर साल यहां हजारों टूरिस्ट्स आते हैं लेकिन राजस्थान में एक और सिटी ऐसी है जिसे देखे बिना राजस्थान की खूबसूरत का या फिर यूं कहें कि राजस्थान की राजशाही का अंदाजा लगाना गलत है।
हम यहां बात कर रहे हैं उदयपुर की। अगर आप राजस्थान के ट्रिप पर निकली हैं तो जयपुर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित उदयपुर तो देखना बनता है।
वैसे तो उदयपुर में ऐसी जगहों की कमी नहीं है जिसे एक बार देखने के बाद भी आप बार-बार देखना चाहेंगी लेकिन इसके बावजूद भी यहां कुछ जगहें ऐसी है जिन्हें एक बार देखने के बाद आप उसी जगह को बार-बार देखने के लिए उदयपुर आना चाहेंगी।
उदयपुर की फेमस जगहों में सिटी पैलेस, लेक पिलोका, लेक पैलेस, मानसून पैलेस, जग मंदिर आदि शामिल हैं, इसके साथ ही यहां से थोड़ी दूरी पर एक ऐसा किला स्थित है जिसकी दीवार चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बाद वर्ल्ड की सबसे लंबी दीवार है। तो चलिए आपको बताते हैं इस किले के बारे में जिसकी दीवार के चर्चे पूरे वर्ल्ड में हैं।
कुम्भलगढ़ का किला
उदयपुर से 70 किमी दूर स्थित कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की प्रतिभा का स्मारक है। कुम्भलगढ़ किला राजस्थान ही नहीं इंडिया के सभी किलों में खास स्थान रखता है, साथ ही इसकी भव्यता को देखने के लिए दुनियाभर से टूरिस्ट्स आते हैं। कुम्भलगढ़ किले को अजेयगढ कहा जाता था क्योंकि इस किले पर विजय प्राप्त करना बेहद ही मुश्किल था।
यहां आपको बता दें कि महाराणा प्रताप की जन्म स्थल कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राज परिवार इसी किले में रहा करता था। कुम्भलगढ़ किले में महाराणा उदय सिंह को पन्ना धाय ने छिपाकर पालन पोषण किया था। साथ ही पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन भी यहीं बीता था।
कुम्भलगढ़ किले की खासियत
इसके चारों ओर एक बडी दीवार बनी हुई है जो चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे बडी दीवार है। यहां हम द ग्रेट वॉल ऑफ चाइना की बात कर रहे हैं जो दुनिया के सात अजूबों में शुमार है। साल 1970 में चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना को आम टूरिस्ट्स के लिए खोला गया था। इस किले का निर्माण सम्राट अशोक के पुत्र संप्रति के बनाए किले के अवशेषों पर साल 1443 से शुरू होकर 15 वर्षों बाद 1458 में पूरा हुआ था।
यह किला कई घाटियों और पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है और इस किले में ऊंचे स्थानों पर महल, मंदिर, आवासीय इमारते बनायीं गईं। साथ ही इसके समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता था। वहीं ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए किया जाता था।
इस किले के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है और कुम्भा महल सबसे ऊपर है। इस किले का निर्माण कार्य पूरा होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर किले का नाम अंकित था। इस किले में प्रवेश द्वार, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें आदि बने हुए हैं।
अब आप जब भी उदयपुर की तरफ जाएं तो कुम्भलगढ़ किला जरूर देखने जाएं
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