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वेट लॉस के साथ अपने सपनों को हासिल कर इन महिलाओं ने साबित दिया कि नामुमकिन कुछ भी नहीं


Paulo Coelho का एक प्रेरक विचार है कि हम अपनी जिंदगी में जो कुछ भी पाने का सपना देखते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। अपने सपनों को पाने के लिए जी-जान से जुटी उन चार महिलाओं पर यह बात पूरी तरह से लागू होती है, जिनके बारे में आज हम बात करेंगे। आइए इन प्रेरणादायी शख्सीयतों के बारे में जानते हैं इन्हीं की जुबानी-

Shweta Rai Bajaj 

Gurgaon Moms inside
मैं एक फिटनेस प्रोफेशनल हूं और मेरा पर्सनेल ट्रेनिंग में स्पेशलाइजेशन है। जब मैं वजन घटाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही थी, तब मुझे इस पेशे से प्यार हो गया और तभी मैंने कॉरपोरेट की दुनिया को अलविदा कहकर इसकी तरफ रुख करने का फैसला ले लिया। इसकी शुरुआत तब हुई, जब मेरा बच्चा 18 महीने का था और उसने प्लेस्कूल जाना शुरू कर दिया, तब मुझे खुद के लिए थोड़ा वक्त मिलना शुरू हुआ और इसी दौरान मैंने एक्सरसाइज की शुरुआत कर दी थी। अब वर्कआउट करते हुए मुझे लगभग दो साल हो चुके हैं। मैंने ज़ुंबा, योग, रनिंग और इसके बाद वेट ट्रेनिंग की। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मुझे इन सब चीजों की आदत लग गई और इसके बाद मैंने जिंदगी में पीछे मुड़कर नहीं देखा।
पहले साल में ही काफी हद तक कम किया वजन 
मैंने अपनी जरूरत के हिसाब से फिटनेस गोल बनाए और एक लक्ष्य हासिल करन के बाद मैं उससे आगे का लक्ष्य तय करने लगी। मैं बताना चाहूंगी कि पहले साल में मैंने काफी हद तक अपना वजन घटा लिया था। मैं अब तक अपनी मंजिल के करीब नहीं पहुंची हूं, लेकिन मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कदम आगे बढ़ा रही हूं। 
खुद पर फक्र है मुझे
जब मैंने एक्सरसाइज की शुरुआत की तो घरवाले खुश थे, लेकिन जब मैं पूरी तरह से इस पर फोकस्ड हो गई तो वे कहने लगे कि मैं इससे लेकर obsessive हो रही हूं। मैं अपने लिए अलग से खाना पकाती थी। हालांकि मुझे थोड़ी मुश्किल जरूर हुई,  लेकिन जब नतीजे दिखने लगे तो मुझे परिवार वालों के एटीट्यूड में भी फर्क नजर आने लगा। बाद में जब मैंने अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला लिया और इसी को फुल टाइम करियर के तौर पर अपनाने के बारे में उन्हें बताया तो वे इस पर राजी नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि मैं गलती कर रही हूं। आज डेढ़ साल बाद मैं अपने फैसले से बहुत खुश हूं और मुझे खुद पर नाज है।
लोगों की सोच बदलना है सबसे बड़ी चुनौती
मुझे लगता है कि ज्यादा वजन वाली महिलाओं के लिए लोगों की जैसी सोच है, उसे बदलना सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें जिम इंस्ट्रक्टर्स जैसे लोग भी शामिल हैं। जहां तक कार्डियो सेक्शन की सवाल है, पुरुष और महिलाओं को लेकर उनकी सोच में बहुत फर्क है। मुझे अपने लिए वेट ट्रेनिंग के लिए इंस्ट्रक्टर खोजने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। आमतौर पर इंस्ट्रक्टर महिलाओं की वेट ट्रेनिंग को गंभीरता से नहीं लेते और ट्रेनिंग के दौरान फोन कॉल पर लग रहते हैं। यही वो वक्त था, जब वर्कआउट के साथ-साथ मैंने इसके बारे में पढ़ना शुरू किया और सर्टिफिकेशन्स लेने लगी। अपने लिए इंस्ट्रक्टर खोजने की मेहनत से लेकर आज लोगों को ट्रेन करने तक का मेरा सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है।

Aditi Sheoran Chhajta

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मैं लर्निंग और डेवलपमेंट प्रोफेशनल हूं और मैंने एमबीए के बाद लगभग एक दशक तक एमएनसीज के साथ काम किया है। मैंने बिहेवियरल कोचिंग देती हूं, लोगों की मेंटेरिंग करती हूं, ताकि वे अपना मैक्सिमम पोटेंशियल हासिल कर सकें और अपने काम में मनचाहे नतीजे पा सकें। मैं आर्मी बैकग्राउंड से आती हूं और मुझे हमेशा से ही बाहरी चीजों में दिलचस्पी रहती है। मुझे ट्रेवल, वेलनेस, पेरेंटिंग पर लिखना पसंद है और हाल ही में मेरे लेख कई मैगजीन्स में प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा मुझे म्यूजिक, थिएटर और आर्ट में भी दिलचस्पी है।
ऐसे हुई एक्सरसाइजिंग की शुरुआत
स्कूलटाइम में मैं ट्रैकिंग पर जाया करती थी और वॉलीवॉल खेला करती थी। मैंने उत्तरकाशी से बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स किया हुआ है, इसीलिए शुरुआत से ही मुझे अलग से एक्सरसाइज करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। मेरी फिटनेस की असली शुरुआत तब हुई जब कुछ महीनों पहले मैं प्रेगनेट हुई। आर्मी में होने के नाते मेरे पति अक्सर ही रनिंग करते थे। यह एक ऐसी चीज थी, जिसे मैंने कभी आजमाया नहीं था। जब मैं 30 की हुई तो मैंने भी दौड़ने की शुरुआत कर दी। मेरे पापा ने मुझे योग करना सिखाया और इसमें मुझे काफी मजा आने लगा। मैंने इसे पूरी गंभीरता से लिया और शिवानंदा वेदांता सेंटर से मैंने लगभग 7 साल तक इसकी प्रैक्टिस की। मैंने सेल्फ डिफेंस में भी खुद को ट्रेन करने का फैसला लिया और कुछ वक्त तक Krav Maga (बॉक्सिंग, रेसलिंग, जूडो, कराटे जैसी टेकनीक्स कॉम्बिनेशन, जिसका इस्तेमाल सेल्फ डिफेंस के लिए किया जाता है।) भी सीखा। उस समय तक मुझे अंदाजा नहीं था कि ये सबकुछ मुझे किस तरफ ले जा रहा है। लेकिन मैं इतना जरूर जानती थी कि मैं अपनी मेंटल और फिजिकल एबिलिटीज को और आगे बढ़ाना चाहती थी। कहने की जरूरत नहीं कि मुझे इन सबमें कितना मजा आ रहा था। मैं अपने मन में वो सारी दीवारें तोड़ देना चाहती थी, जिससे मैं फिटनेस के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार कर सकूं और डिलिवरी के बाद भी इस पर कायम रहूं। 
पूरी हुई bucket list की wishes
मेरा वर्कआउट कार्डियो, फ्लेक्सिबिलिटी और कोर स्ट्रेंथ का मिक्स था। एक फिटनेस कॉन्टेस्ट के लिए खुद को तैयार करते हुए मैंने वेट लिफ्टिंग की भी शुरुआत कर दी। मजेदार बात यह है कि एक साल पहले तक मैं बमुश्किल एक पुश-अप भी नहीं कर पाती थी और सिर के बल खड़े होना तो बहुत दूर की बात थी, जिसे मैं सिर्फ सपने में ही कर दिखाने की सोच सकती थी। अब एक साल बाद मैंने अपनी bucket list की सारी wishes पूरी कर ली हैं। 
पिंकेथॉन में दौड़ी 10 किलोमीटर
प्रेगनेंसी से पहले मैं 60 किलो की थी और प्रेगनेंसी के दौरान मेरा वजन 14 किलो बढ़ गया था। ब्रेस्टफीडिंग और ग्रेजुअल वर्कआउट से 6 महीनों में फिर से 60 किलो पर आ गई, लेकिन यह मेरी मंजिल नहीं थी। मेरा लक्ष्य था खुद में खुशी और आत्मविश्वास महसूस करना। मैं जितना समय खुद के साथ बिताया, उससे मैंने यह सबकुछ पा भी लिया। मैंने खाना पूरी तरह छोड़ा नहीं, जो भी खाती थी, वह हेल्दी और घर का बना हुआ होता था। मुझे लगता है कि मेरे सफर की अभी सिर्फ शुरुआत हुई है। 6 महीने वेट उठाने का अनुभव मुझे जैसी के लिए काफी ज्यादा है, जिसने कभी भी इसका अनुभव पहले नहीं किया था। जहां तक रनिंग का सवाल है, मैं पिंकेथॉन में पहली बार 10 किलोमीटर दौड़ी थी और उसके बाद adhm में 21 किलोमीटर दौड़ी, जब मेरी बच्ची महज 9 महीने की थी। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं ये दौड़ पूरी कर पाऊंगी लेकिन मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि जब आप मन में कुछ ठान लेते हैं तो वह पूरा होते हुए भी दिखने लगता है। इस तरह से अपनी सीमाओं से आगे बढ़ना अपने आप में बहुत अच्छा एक्सपीरियंस था। 
घरवालों ने दिया साथ
मेरे घरवाले अचानक वर्कआउट की तरफ मेरा फोकस देखकर हैरान थे। मैंने अपनी बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ दी और वह सबकुछ किया जो मुझे पसंद था, इसमें से एक चाहत हेल्दी लिविंग अपनाने की भी थी। मेरी फैमिली यह सबकुछ देखकर खुश थी। फैमिली ने मेरे सपने पूरे करने में मेरा भरपूर साथ दिया।
कुछ देर मां का फर्ज ना निभा पाने के अपराधबोझ से बाहर आना थी सबसे बड़ी चुनौती
मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि उस अपराधबोध पर विजय पाना, जिसमें मुझे लगता था कि मैं अपनी बेटी के साथ सही नहीं कर रही हूं। नई-नई मां बनने के बाद मैं खुद को सही शेप में लाने के लिए वो एक घंटे का वक्त खुद को दे रही थी, जो मैं अपनी बच्ची को देना चाहती थी। धीरे-धीरे अपराधबोध का भाव मिटने लगा और हेल्दी होने की इच्छा और मजबूत होती गई और मुझे लगता है कि भगवान ने मेरी बेटी के रूप में मुझे जो खूबसूरत सा तोहफा दिया, उसके बदले यह gratitude दिखाने का मेरा तरीका था। दूसरी बड़ी चुनौती वक्त मैनेज करने और consistency बनाए रखने की थी, यह काफी महत्वपूर्ण और मुश्किल काम है, खासतौर पर तब जब आपका बच्चा छोटा हो। 

शीतू दिगानी

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मैं एक मल्टीटास्कर हूं। मेरा आठ साल का बेटा है। पेश से मैं एक डिजाइनर हूं और एक क्वालीफाइड मेकअप आर्टिस्ट भी हूं। लेकिन इन सबसे पहले मेरा पहला प्यार है फिटनेस और वर्कआउट। मेरे सिक्स पैक एब्स नहीं हैं, ना ही मसल्स हैं, मेरी टोन्ड बॉडी है और मैं फिजिकली स्ट्रॉन्ग हूं। मैं कुछ साल पहले तक कार्डियो किया करती थी और ट्रेड मिल पर दौड़ा करती थी, लेकिन बाद के दो-तीन सालों में मैंने वेट ट्रेनिंग/ फंक्शनल ट्रेनिंग की अहमियत समझी। मुझे समझ में आया कि परफेक्ट स्ट्रेंथ के लिए दोनों का होना जरूरी है। 
ऐसे होती है मेरी फिटनेस की शुरुआत
मैं सुबह शहद के साथ गर्मपानी लेकर दिन की शुरुआत करती हूं। इसके बाद मैं ग्रीन टी लेती हूं। मैं रोजाना ब्रेकफास्ट से पहले थोड़ी सी प्रोटीन डाइट लेती हूं, जिसमें अंडे की सफेदी, टोफू या कोई फल शामिल होता है। इसके बाद मैं एक घंटे 20 मिनट का वर्कआउट करती हूं और एक घंटे की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लेती हूं, 20 मिनट कार्डियो भी करती हूं। अगर आप भी इसे फौलो करना चाहती हैं तो आपके लिए एक टिप यही होगी कि अच्छे रिजल्ट्स पाने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग के बाद कार्डियो करें। साथ ही हर तीन महीनों में अपनी वर्कआउट रजीम में बदलाव लाने का प्रयास करें, इससे वर्कआउट का उत्साह बना रहेगा।
खुद पर जीत हासिल करना है सबसे बड़ा चैलेंज
मैं और मेरी कामयाबी के बीच सबसे बड़ा रोड़ा मैं खुद थी। मेरे बेटे के होने के बाद मैंने कभी खुद को उस तरह चैलेंज नहीं किया जैसे मैंने पिछले 6-7 सालों में किया। और ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि मुझे इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि कितनी capable हूं। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप अपने दिमाग और दिल पर जीत हासिल कर लें। मेरा मानना है कि हम जो कुछ भी हासिल करने की चाहत रखते हैं, उसके लिए हमें 101 परसेंट अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।

सीमा वर्मा

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मैं 52 साल की ग्रेंड मॉम हूं। मैं fitness freak हूं और भोपाल में जिम ओनर हूं। मैंने एक्सरसाइजिंग की शुरुआत लगभग 6 साल पहले की थी, जब मेरी बेटी कॉलेज में थी और उसका वजन बढ़ता जा रहा था। मैंने उसे एक्सरसाइज करने के लिए कहा, लेकिन उसने मेरी बात की परवाह नहीं की। उसके सामने एक मिसाल पेश करने के लिए मैंने खुद वर्कआउट शुरू किया और जल्द ही मैं शेप में आ गई। जब मैंने खुद में ऐसा बदलाव देखा तो मैं मसल्स बिल्डिंग  के लिए और passionate हो गई। इसके बाद मैंने अपना जिम भी खोल दिया।
अपने ने उड़ाई हंसी, लेकिन मैं आगे बढ़ती रही
वर्कआउट के लिए मेरे जुनून को देखकर शुरुआत में मेरे नजदीकी लोगों और दोस्तों ने मेरा मजाक बनाया और कहा कि इस सब कि मुझे क्या जरूरत है। लेकिन अब वो सभी मुझे appreciate करते हैं और मेरा साथ देने के लिए भी तैयार रहते हैं। एक साल में फिटनेस हासिल करने के साथ-साथ अपने कामों के लिए भी मैंने एनर्जी हासिल कर ली। मेरी फिटनेस रजीम में रोजाना की 5-6 किलोमीटर की वॉक और 1.5 घंटों की स्ट्रेंथ ट्रेनिंग शामिल है। 
पति की रजामंदी पाना थी सबसे बड़ी चुनौती
मेरे लिए अपने पति को यह समझाना सबसे मुश्किल था कि मसल ट्रेनिंग से महिला पुरुषों जैसी नहीं दिखने लगती। वक्त लगा लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां अनुकूल होती गईं। कड़ी मेहनत के बाद मैंने साल 2015 का मिस फिटनेस इंडिया का रनर-अप का खिताब जीता। अब मैं श्रीलंका में एक और प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए जा रही हूं।
सिर्फ अपनी उम्र देखकर खुद को लिमिट मत करिए
मैं सभी युवा महिलाओं को यही संदेश देना चाहती हूं कि उम्र कभी आपके सपनों को हासिल करने के बीच नहीं आ सकती। अभी से अपने ख्वाब को पाने के लिए कोशिश करना शुरू कर दीजिए। अगर आप सही रास्ते पर हैं तो लोग खुद-ब-खुद आपके साथ जुड़ते चले जाएंगे।
इन चारों moms की कहानियां बहुत inspiring हैं। अगर आपने भी अपने लिए कुछ सपने देखे हैं तो इनसे प्रेरणा लेते हुए उन्हें पूरा करके ही दम लीजिए। कुछ ऐसा कर दिखाइए, जो अब तक कोई न कर सका हो। यही वो वक्त है जब आप औरतों के लिए सदियों से चली आ रही पुरानी सोच को बदल सकती हैं और खुद को अचीवर के रूप में पेश कर सकती हैं।

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